हैलो! Friends!
सच्ची शिक्षा क्या है?
सच्ची शिक्षा वही
है जो व्यक्ति इन तीन मूल
मंत्रों का पालन अपने
जीवन में करता है।
1. सदा सत्य
बोलो।
2. धर्म का पालन
करो।
3. क्रोध मत
करो।
यही सच्ची शिक्षा
कहलाती है।
जीवन में कितनी
भी कठिनाईया क्यों
न आयें किन्तु
हमें इन तीन
मूल मन्त्रों को
कभी भी नहीं
भूलना चाहिए।
हमारे देश में
ऐसे बहुत से महान व्यक्ति हुए
जिन्होंने अनेक कठिनाईयों का
सामना किया,
किन्तु शिक्षा के असली मूल मंत्र और उसके सार को कभी भी नहीं भूले, उन्होंने शिक्षा के असली सार को पहिचाना इसी कारण आज वही व्यक्ति श्रेष्ठ एवं महान विभूति कहलाते हैं।
किन्तु शिक्षा के असली मूल मंत्र और उसके सार को कभी भी नहीं भूले, उन्होंने शिक्षा के असली सार को पहिचाना इसी कारण आज वही व्यक्ति श्रेष्ठ एवं महान विभूति कहलाते हैं।
सच्ची शिक्षा के 3 मूल मंत्र
1. सदा सत्य बोलो
जो व्यक्ति सदा
सत्य बोलते है
वह कभी भी
असफल नहीं होते
लाख कठिनाइयाँ आने
पर भी वह
सफलता की सीडी
पर पहुंच ही
जाते हैं।
शिक्षा का उद्देश्य ही सत्य
बोलना और सफलता
के शिखर पर
पहुँचना है।
बुद्ध कहते हैं
कि सत्य को
छोड़कर जो असत्य
बोलता है, धर्म
का उलंघन करता
है, परलोक की
जिसे चिंता नहीं
है, वह आदमी
बड़े से बड़ा
पाप कर सकता
है।
2. धर्म का पालन करो
दोस्तों! हमारा धर्म क्या
है? बड़ों आदर
करना, उनका सम्मान
करना, छोटों को
प्यार करना, दूसरों
की मदद करना
एवं असहाय को सहारा
देना।
यही हमारा मूल धर्म है।सफल व्यक्ति सदा इन धर्मों का पालन करते हैं और सभी से प्रेम स्नेह व सम्मान पाते हैं। उनकी सच्ची शिक्षा उनके इन्हीं विचारों व भावों में प्रकट होती है।
धन, सुख, संपत्ति व समृद्धि सभी धर्म के मार्ग पर ही प्राप्त होते है।
3. क्रोध मत करो
जो व्यक्ति क्रोध
पर विजय प्राप्त कर
लेता है। उस व्यक्ति को
दुनिया की कोई
की कोई ताकत हरा
नहीं सकती। क्रोध ही
व्यक्ति का सबसे बड़ा
दुश्मन है।
इसलिए क्रोध नामक दुश्मन को अपने अन्दर प्रकट ही नहीं होने देना चाहिए। क्रोध के कारण ही व्यक्ति स्वयं को हानि व क्षति पहुँचता है और अपनी असफलता का कारण स्वम ही बन जाता है।
गौतम बुद्ध ने भी कहा है - "आपको क्रोध करने की सजा नहीं मिलती हैं बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है।"
इसलिए क्रोध नामक दुश्मन को अपने अन्दर प्रकट ही नहीं होने देना चाहिए। क्रोध के कारण ही व्यक्ति स्वयं को हानि व क्षति पहुँचता है और अपनी असफलता का कारण स्वम ही बन जाता है।
गौतम बुद्ध ने भी कहा है - "आपको क्रोध करने की सजा नहीं मिलती हैं बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है।"
सच्ची शिक्षा कहानी
सच्ची शिक्षा के 3 असली मूल मंत्र |
गुरु द्रोणाचार्य के कौरव और पांडव सामान रूप से शिक्षा ग्रहण करते थे। एक बार गुरु द्रोणाचार्य जी, कौरव, पांडव सहित अन्य शिष्यों को नीति और धर्म का पाठ पढ़ा रहे थे। उन्होंने सबको तीन वाक्य याद करने कहा-
1. सदा सत्य बोलो।
2. धर्म का पालन करो।
3. क्रोध मत करो।
अगले दिन सभी कुमारों ने गुरूजी को तीनों वाक्य सुना दिये। लेकिन जब युधिष्ठिर की बारी आयी तो वो गुरूजी से बोले - "गुरुदेव मुझे तो अभी दो वाक्य ही याद हुए हैं"। गुरुदेव बोले - "अच्छा ठीक है कल याद कर आना"।
अगले दिन गुरूजी ने युधिष्ठिर से वाक्य सुनाने के लिए कहा। युधिष्ठिर बोले, -"गुरूजी मुझे आज भी दो वाक्य याद हुए हैं। द्रोणाचार्य गुस्से से आग-बबूला हो गये और युधिष्ठिर को छड़ी से पीटना
शुरू कर दिया परन्तु युधिष्ठिर ऐसे मुस्कुरा रहे थे।
जैसे कुछ हुआ ही ना हो। गुरु द्रोण को कुछ आश्चर्य हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा - "कौन से दो वाक्य याद हो गये हैं।
युधिष्ठिर बोले गुरूजी लगता है अब तीनों वाक्य याद हो गये हैं। जिस समय आप मुझे पीट रहे थे, उसी समय मैंने मन में सोच लिया था कि मुझे क्रोध नहीं करना चाहिए और अब मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है।
यह सुनकर गुरु द्रोण ने युधिस्ठिर को गले से लगा लिया।
सन्देश - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदा सत्य बोलना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, तथा क्रोध नहीं करना चाहिए। जैसा कि युधिस्ठर को तीसरा वाक्य याद न होने पर सत्य बोला, गुरु की आज्ञा मानकर धर्म का पालन किया व पिटने पर भी क्रोध नहीं किया।
इस प्रकार युधिस्ठिर ने गुरु द्वारा दिये तीनों वचनों का पालन किया। यही सच्ची शिक्षा कहलाती है। जो व्यक्ति इन तीनों बातों का पालन अपने जीवन में करता है उस व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता।
अर्थात शिक्षा के इन तीन मूल मन्त्रों को अपने जीवन में उतारने से आपकी सफलता निश्चित है।
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अगले दिन सभी कुमारों ने गुरूजी को तीनों वाक्य सुना दिये। लेकिन जब युधिष्ठिर की बारी आयी तो वो गुरूजी से बोले - "गुरुदेव मुझे तो अभी दो वाक्य ही याद हुए हैं"। गुरुदेव बोले - "अच्छा ठीक है कल याद कर आना"।
अगले दिन गुरूजी ने युधिष्ठिर से वाक्य सुनाने के लिए कहा। युधिष्ठिर बोले, -"गुरूजी मुझे आज भी दो वाक्य याद हुए हैं। द्रोणाचार्य गुस्से से आग-बबूला हो गये और युधिष्ठिर को छड़ी से पीटना
शुरू कर दिया परन्तु युधिष्ठिर ऐसे मुस्कुरा रहे थे।
जैसे कुछ हुआ ही ना हो। गुरु द्रोण को कुछ आश्चर्य हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा - "कौन से दो वाक्य याद हो गये हैं।
युधिष्ठिर बोले गुरूजी लगता है अब तीनों वाक्य याद हो गये हैं। जिस समय आप मुझे पीट रहे थे, उसी समय मैंने मन में सोच लिया था कि मुझे क्रोध नहीं करना चाहिए और अब मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है।
यह सुनकर गुरु द्रोण ने युधिस्ठिर को गले से लगा लिया।
सन्देश - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदा सत्य बोलना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, तथा क्रोध नहीं करना चाहिए। जैसा कि युधिस्ठर को तीसरा वाक्य याद न होने पर सत्य बोला, गुरु की आज्ञा मानकर धर्म का पालन किया व पिटने पर भी क्रोध नहीं किया।
इस प्रकार युधिस्ठिर ने गुरु द्वारा दिये तीनों वचनों का पालन किया। यही सच्ची शिक्षा कहलाती है। जो व्यक्ति इन तीनों बातों का पालन अपने जीवन में करता है उस व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता।
अर्थात शिक्षा के इन तीन मूल मन्त्रों को अपने जीवन में उतारने से आपकी सफलता निश्चित है।
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