कविता उपवन लुटा माली टूटा बिखर गया संसार कैसा ये अत्याचार |
कविता
उपवन लुटा माली टूटा बिखर गया संसार
कैसा ये अत्याचार
बंजर धरती पर माली ने आशा के कुछ पेड़ लगाए।
बीजों को डाला भूमि पर , बड़ी मेहनत से सींचे जाए।
प्रतिदिन सेवा करता उनकी , एक छोटी -सी आस लगाए।
एक दिन लहराते पौंधों में , नन्ने - नन्ने फूल खिलाए।
मेहनत उसकी सफल हो गयी , उपवन में हैं फूल खिलाए।
भँवरे आकर झूमा करते , गुन-गुन गुन-गुन गीत सुनाए।
माली खुश होकर मन ही मन , मंद मंद मुस्काता जाए।
उपवन में रहूँगा सेवा करूँगा , बार बार यह कहता जाए।
पुष्पों को लहलाता देखकर , अपनी हर पीड़ा भूल गया।
एक दिन देखा एक अजब नजारा , माली का दिल टूट गया।
सब ने घर रखने को सुन्दर , माली का उपवन लूट लिया।
पुष्प हो गए उसके बेघर , ये मानव ने क्या किया ?
खिलते फूलों को देखकर , मानव मानवता को भूल गया।
मेरा लहराता मुस्कुराता आँगन , पलभर में ही उजड़ गया।
कुछपल संग रहकर , पलकों पर सजकर , खुशियों का दामन छूट गया।
नित् जगत लूटकर , धीमे से आकर , हारे योद्धा सा टूट गया।
हारा सा रहकर , दुःखों में बहकर , अनजानी हलचल छोड़ गया।
तट से टकराकर , खुद ही घबराकर , नैनों का धीरज तोड़ गया।
हे मानव ! रक्षा करो उपवन की , करुणा में वह खो गया।
पुष्पों का भी जीवन है अपना , यह कहकर धरती पर सो गया।
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