कहानी बालक का लक्ष्य |
एक आश्रम में गुरू अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे। पढ़ाते - पढ़ाते गुरूजी ने सोचा , क्यों न आज अपने शिष्यों की परीक्षा ली जाए कि कौन शिष्य मेरी दी गई शिक्षा पर और अपने लक्ष्य की ओर ध्यान दे रहा है।
गुरूजी बोले , "शिष्यों आज आपकी परीक्षा है।"
गुरूजी ने पहले से ही परीक्षा लेने के लिए एक बनावटी चिड़िया किसी वृक्ष पर रख दी थी। शिष्यों को चिड़िया की आँख पर तीर चलाना था।
तीर छोड़ने से पहले गुरूजी ने सभी शिष्यों से पूछा , "तुम्हें जो कुछ दिखाई देता है वह बताओ।"
सबका उत्तर था - मुझे वृक्ष , वृक्ष पर बैठी चिड़िया , पत्ते , अपने भाई - बंधु , आप सभी कुछ दिखाई पड़ते हैं।
सभी शिष्यों ने बता दिया। किन्तु एक शिष्य बिल्कुल शान्त खड़ा था।
गुरूजी बोले , "तुम शान्त क्यों हो ?" "शिष्य ! तुम भी बताओ।"
वह बोला , "मुझे केवल चिड़िया की आँख दिखाई पड़ती है।"
गुरूजी मुस्कुराए और बोले , "तुम ही सही लक्ष्य पर जा रहे हो। तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी।"
शिष्य ने लक्ष्य पर बाण चला दिया। बाण सीधा चिड़िया की आँख पर जाकर लगा।
वह शिष्य कोई और नहीं वीर योद्धा अर्जुन था जो अपने लक्ष्य को भेद सका और वह गुरूजी द्रोणाचार्य थे। बाकि शिष्य कौरव एवं पाण्डव थे।
सन्देश - इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर पूरी लगन , मेहनत और एकाग्रता से ध्यान देता है, वह व्यक्ति ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है।
व्यक्ति का लक्ष्य जीवन में जो भी हो। उसे प्राप्त करने के लिए उसे अपनी शारीरिक शक्ति का प्रयोग ही नहीं बल्कि अपनी सम्पूर्ण मानसिक शक्ति एवं एकाग्रता का भी सदपयोग समय पर करना चाहिए। अर्जुन के समान जो व्यक्ति अपना ध्यान सदैव लक्ष्य पर केन्द्रित रखता है वह अवश्य सफलता प्राप्त करता है।
कहानी
कहानी - चमत्कारी मंत्र |
प्राचीन समय की बात है। एक बालक बचपन से ही बहुत अधिक मूर्ख था। उसकी मूर्खता पर उसके माता -पिता और गुरू सभी खिन्न रहते थे।
सभी ओर से तिरस्कृत उस बालक ने निराश होकर अपना घर - परिवार सबकुछ छोड़ दिया।
घर छोड़ने के पश्चात् जब वह चलता चला जा रहा था। कुछ समय पश्चात् वह एक गाँव में पहुँचा। उसे बहुत प्यास लगी थी। वह कुए के पास पानी पीने पहुँचा। कुए पर कुछ स्त्रियाँ पानी भर रहीं थीं।
अचानक बालक की दृष्टि एक पत्थर पर पड़ी जिसमें गड्डा हो गया था।
बालक ने एक स्त्री से पूछा , "माँ ! पत्थर पर यह गड्डा कैसे हो गया ?"
स्त्री ने हँसकर कहा , "बेटा रस्सी को बार -बार ऊपर - नीचे कुए में भेजने से यह गड्डा हो गया है।"
यह जानकर बालक को एक मंत्र मिल गया। उसने सोचा जब रस्सी की बार - बार रगड़ से पत्थर पर निशान पड़ सकता है तो मेरे कोशिश करने पर में बुद्धिमान क्यों नहीं बन सकता। अर्थात मैं भी चतुर बन सकता हूँ।
यह सोचकर वह अपने घर लौट आया। उसने पढ़ना एवं श्रम करना प्रारम्भ कर दिया। बड़ा होकर वह बालक संस्कृत के व्याकरण आचार्य बोपदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बहुत बड़ा महान विद्वान बना।
संदेश - जिस प्रकार एक मुर्ख बालक निरन्तर अभ्यास से महान विद्वान बन सकता है तो उसी प्रकार लगातार कोशिश करने से संसार का सामान्य व्यक्ति भी श्रेष्ट बन सकता है।
"करत - करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ,
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।"
आपको Stories पसन्द आई हैं तो कृपया इस Post को Like करें , Share करें , व Comment करना न भूलें।