9 मृदुल लाभप्रद विचार

9 मृदुल लाभप्रद विचार


कठिन परिश्रम का फल 

1. कठिन परिश्रम से ही सभी कार्य पूरे हो सकते हैं। केवल बैठकर सोचने से कोई भी कार्य पूरा नहीं होता। 
जैसे सोते हुए शेर के मुँह में स्वयं ही हिरन नहीं चले जाते। 


2 . मीठे वचन व कोमल वाणी , सभी को सुखदायी लगती है। इसलिए सभी को मीठे वचन व कोमल वाणी ही बोलनी चाहिए। 


जैसे कोयल की वाणी सभी को प्रिय होती है और कौवे    की वाणी सभी को अप्रिय होती है। 



सर्वश्रेष्ठ गुण

3 . भलाई करना महापुरूषों का सर्वश्रेष्ठ गुण होता है , वह निःस्वार्थ होकर दूसरों की भलाई व सहायता करते हैं।  


जैसे पेड़ दूसरों के लिए फल - फूल देते हैं , नदियाँ दूसरोँ की सहायता के लिए लगातार बहती हैं और सूर्य भी दूसरों के लिए निरन्तर प्रकाशवान होता है। 

4 . जिसमें स्वयं बुद्धि नहीं होती है उसको विद्वान व्यक्ति भी कुछ नहीं सिखा सकता है। 


जैसे दृष्टिहीन व्यक्ति को दर्पण दिखाने से कोई लाभ नहीं होता है। 



महात्मा गाँधी 

5 . जो मनुष्य मेहनती होते हैं , साहसी होते हैं , धैर्य रखते हैं , बुद्धि से कार्य करते हैं व ज्ञान का सही प्रयोग करते हैं ईश्वर भी उनकी सदैव सहायता करता है। 


जैसे महात्मा गाँधी जी ने अपनी मेहनत , साहस , धैर्य , बुद्धि व ज्ञान के बल पर भारत देश को आजाद कराया। 


6. बैर  का अंत बैर से नहीं होता है। बैर भाव को त्यागने से ही बैर का अंत सम्भव है। 



उद्देश्य की ओर कदम 
7. व्यक्ति को अपने उद्देश्य की ओर सदैव कदम बढ़ाते रहना चाहिए। जो व्यक्ति उद्देश्य से भटकते हैं , वे कभी अपनी मंजिल नहीं पा सकते। 

जैसे एक छोटी सी चींटी चलते -चलते सौ कोस तक की दूरी तय कर लेती है किन्तु बिना दौड़े चीता भी अपने शिकार को छू भी नहीं सकता। 

8 . ज्ञानवान व्यक्ति कभी भी गर्व नहीं करता चाहे वह कितना भी श्रेष्ठ कार्य कर ले या सफलता प्राप्त कर ले,  किन्तु गुणहीन व्यक्ति थोड़ी सी सफलता पर अत्यधिक घमंडी हो जाता है। 

जैसे जल से पूरा भरा घड़ा कभी भी शोर नहीं करता है , किन्तु आधा भरा हुआ घड़ा ,  सदैव ही शोर करता है। 



महापुरूषों का गुण 

9. महापुरूष लोग सुख और दुःख में , हमेशा एक समान रहते हैं। यह उनका विशेष गुण होता है। 

जैसे सूर्य उदय होते समय लाल रहता है , तो अस्त होते समय भी लाल रहता है।    


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कोमल की मूल्यवान टोकरी

कोमल की मूल्यवान टोकरी





कोमल की मूल्यवान टोकरी
कहानी
रतनपुर नाम का एक सुन्दर गांव था। रतनपुर गांव नदी किनारे बसा हुआ था। अचानक नदी के बांध के टूटने से सारा गांव बाढ़ की चपेट में आकर तहस -नहस हो गया। सारे खेत -खलियान जलमग्न हो गए।
गांव के लोग बेघर हो गए।


गांव के बहुत से लोग पास के शहर में दशहरा मैदान में आकर रहने लगे। उनके पास अब रहने के लिए पक्का  घर नहीं था। उन्होंने रहने के लिए छोटी -छोटी झोपड़ियाँ बना ली। अब वे बहुत निर्धन थे। वे अक्सर आपस में अपने गॉव में बिताये अपने अच्छे दिनों को याद करके खुश रहना सीख रहे थे।



उनके पास दिन भर में पेटभर खाने का भी जुगाड़ करना बड़ा मुश्किल था। माँ -बाप दिन -भर झोपड़ियों में रहकर हाथ से बांस की रंग -बिरंगी टोकरियाँ बनाते थे। उनकी बच्चे बस - स्टेण्ड पर टोकरी बेचने जाते। वे पूरे दिन टकटकी लगाए ग्राहकों का इन्तजार करते और सोचते शायद आज भरपेट खाना शाम तक मिल जाए।


इन परिवारों में एक छोटा -सा परिवार भी था। इस परिवार में अपाहिज माता -पिता व उनकी एक छोटी-सी सात वर्ष की सुन्दर बेटी थी। उसका नाम कोमल था। टोकरी बेचने की सारी ज़िम्मेवारी उस छोटी बच्ची के कन्धों पर थी।


प्रतिदिन की तरह सभी बच्चे बस -स्टैण्ड के नजदीक ग्राहकों का इन्तजार कर रहे थे। उस दिन कोमल टोकरी लेकर नहीं आई थी। बच्चों क पास अचानक एक बस आकर रुकी। कुछ लोग फल खरीदने उतरे। एक व्यापारी कुछ टोकरियाँ खरीदने उतरा। वे बच्चे अपनी -अपनी टोकरियाँ बेचने के लिए उस  व्यापारी के चारों ओर इस तरह इकठ्टे हो गए जैसे टिड्डियों का झुण्ड एक साथ तैयार फ़सल के चारों ओर छा जाता है।



व्यापारी ने बहुत सी टोकरियाँ खरीदीं। तभी कोमल दौड़ती हुई वहाँ आई। उसके हाथ में सुन्दर -सुन्दर टोकरियाँ थीं। कोमल की आँखों में आँसू भरे हुए थे। करुणा भरी आवाज में कोमल बोली , "बाबूजी मेरी टोकरी भी खरीद लीजिए ना "


व्यापारी पहले से ही अनेक टोकरियाँ खरीद चुका था। वह बोला , "मैने तो बहुत सारी टोकरियाँ खरीद ली हैं, अब मुझे और टोकरियों की आवश्यकता नहीं है "।

कोमल के फटे हुए कपड़े व आँखों में आँसू देखकर व्यापारी बोला -" मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ " यह कहकर उसने कोमल की टोकरी में कुछ पैसे डाल दिए।

कोमल को व्यापारी का दान अच्छा नहीं लगा। कोमल बोली , "बाबूजी मैं ग़रीब हूँ किन्तु भिखारी नहीं " यह कहकर कोमल ने पैसे वापस कर दिए और बोली , "टोकरी नहीं खरीद सकते तो कोई बात नहीं " 
छोटी सी कोमल की यह बात सुनकर , व्यापारी आश्चर्यचकित रह गया और उसे एहसास हुआ कि उसने जो किया वह बहुत गलत था। किसी के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। `

कोमल अपने ऑसू पोंछकर मुस्कुराई और दौड़ती हुई दूसरी बस की ओर चली गयी।

तभी बस में से एक और व्यापारी उतरा और उसने कोमल की सभी टोकरियाँ बहुत अच्छे मूल्य पर खरीद लीं। और कोमल अपने साथियों के साथ खुश होकर वापस घर लौट गई। 

उस नन्हीं सी कोमल के व्यवहार से व्यापारी समझ गया कि व्यक्ति की पहिचान उसके बाहरी आवरण से नहीँ बल्कि आन्तरिक गुणों , अच्छे विचार और आत्मसम्मान से जीने की कला से होती है। बाहरी आवरण , वेशभूषा तो व्यक्ति के जीवन की विषम परिस्थितियाँ बनाती हैं। अनेक कठिन परिस्थितियों व्यक्ति को इतना मजबूत कर देती हैं कि वह किसी भी समस्या में अपने मानवीय गुणों सच्चाई , ईमानदारी व आत्मसम्मान से जीना नहीं छोड़ता है।


सन्देश : - आज हमने भी कोमल से यह सीखा कि हमें भी किसी के सामने दया की भीख़ नहीं माँगनी चाहिए। और अपने कर्म पर ही विश्वास रखना चाहिए। मेहनत का फल सदैव मीठा होता है। देर से ही मिले किन्तु मिलता अवश्य है जैसे कोमल को मिला। कोमल को अपनी मेहनत , ईमानदारी और सच्चाई पर पूर्ण विश्वास था। इसी कारण उसे अपने काम में सफलता मिली। हमें भी अपने काम को मेहनत , सच्ची लगन और ईमानदारी से करना चाहिए। दूसरों का सहारा और दया पाना छोड़कर अपनी काबिलियत से जीना चाहिए। पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य को याद रखते हुए कर्म करते रहना चाहिए। 


भगवत गीता में भी लिखा है -
"कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।" 
अर्थात  - कर्म करो फल की इच्छा मत करो  

इस प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से आप सभी को कुछ मूल्यवान मानवीय गुणों से परिचित कराना हमारा एक छोटा सा प्रयास है।

नन्हीं कोमल की कहानी आपको पसन्द आई है 

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प्रकृति की ऐसी अनोखी सीख हरपल मिलेगी जीत

प्रकृति की ऐसी अनोखी सीख हरपल मिलेगी जीत

कविता 
प्रकृति की ऐसी अनोखी सीख हरपल मिलेगी जीत

सूरज की किरणों से सीखो , नहीं होना बेईमान ,
अपने कर्म पथ पर तुम , बनना अच्छा इन्सान। 

नन्हीं सी चिड़िया सीखा रही , सुबह -सवेरे जगना ,
जीवन में ख़ुशी से हर पल , जीना और चहकना।

बहती पवन सीखा रही , नित नए -नए चिन्तन करना , 
बाधाओं को हराके पीछे, आगे बढ़ते रहना। 

खड़ा हिमालय उत्तर में कहता , खुद तूफानों को सहना ,
अडिंग हमेशा रहना , कष्ट हमेशा सहना।

बहती नदियाँ सिखा रहीं , हर कष्ट में आगे बढ़ना ,
कदम बढ़ाकर आगे बढ़ना , कभी न किसी से डरना। 

तपन को सहकर ठण्डक देना , औरों को सुख देना ,
पेड़ प्रकृति सीखा रही , हरपल ऐसा करना। 

झरने हमें सिखाते प्यारे ! गिरकर फिर से संभलना ,
हरदम आगे बढ़ना , बाधाओं से लड़ना। 

फूल हमें सिखाते हरदम  , प्यार भरी मुस्कान ,
महकते दिल से अपने , खुश करना हर इन्सान। 

कुछ कर न सको औरों के लिए तो , बस देना इक मुस्कान ,
तेरे बाद भी हर कोई कहेगा , बहुत अच्छा है इन्सान। 

बस इतनी - सी चाह है , कहें  अच्छा है इन्सान ,
यही आसान रास्ता है , बने सभी महान। 


सन्देश - प्रकृति हर इंसान को सिखाने का सबसे अच्छा उदाहरण है। प्रकृति से सबकुछ सीखा जा सकता है, इसलिए स्वयं को प्रकृति के करीब ले जायें।

The nature is the best example to teach every human being. Everything can be learnt from the nature so bring yourself close to the nature.



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5 अच्छे विचार महानता की ओर

5 अच्छे विचार महानता की ओर

नये विचारों से परिवर्तन आता हैं। परिवर्तन से खुद पर विश्वास व भरोसा बढ़ता है। आपको भरोसा होने पर
आत्मविश्वास और अधिक अंदर से आता है। आपका  ध्यान अपने उदेश्य पर स्थिर होने लगता है। आप अपनी सम्पूर्ण शक्ति से समस्या (Problem ) को काबू करते हुए हर समस्या (Problem ) का हल (Solution ) समस्या में से निकाल देते हो, यही सफलता (success ) कहलाती है और आप महान बन जाते हो।

ऐसे ही 5 अच्छे विचार (thoughts  ) जो महानता की ओर ले जाएं -

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समय की शक्ति

समय के साथ चलने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। 
समय के साथ  चलने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं होता। 

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कठिन परिश्रम

कठिन परिश्रम ही व्यक्ति को सफलता प्रदान करता है।

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कर्म - फल

सदैव कर्म करने वाले व्यक्ति कभी फल की इच्छा नहीं करते।

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विचारोँ की महानता 

अच्छे एवं प्रगतिशील विचार वाले व्यक्ति हमेशा महानता के शिखर पर 
पहुंचते हैं।








































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सुख का एहसास 


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सच्ची शिक्षा के 3 असली मूल मंत्र

सच्ची शिक्षा के 3 असली मूल मंत्र


हैलो! Friends!

सच्ची शिक्षा क्या है?
सच्ची शिक्षा वही है जो व्यक्ति  इन तीन मूल मंत्रों का पालन अपने जीवन  में करता है।

1. सदा सत्य बोलो।
2. धर्म का पालन करो।
3. क्रोध मत करो।

यही सच्ची शिक्षा कहलाती है।

जीवन में कितनी भी कठिनाईया क्यों आयें किन्तु हमें इन तीन मूल मन्त्रों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
हमारे देश में ऐसे बहुत से महान व्यक्ति हुए जिन्होंने अनेक कठिनाईयों का सामना किया,

किन्तु शिक्षा के असली मूल मंत्र और उसके सार को कभी भी नहीं भूले, उन्होंने शिक्षा के असली सार को पहिचाना इसी कारण आज वही व्यक्ति श्रेष्ठ एवं महान विभूति कहलाते हैं।


 सच्ची शिक्षा केमूल मंत्र 
1. सदा सत्य बोलो
जो व्यक्ति सदा सत्य बोलते है वह कभी भी असफल नहीं होते लाख कठिनाइयाँ आने पर भी वह सफलता की सीडी पर पहुंच ही जाते हैं।
शिक्षा का उद्देश्य  ही सत्य बोलना और सफलता के शिखर पर पहुँचना है।

बुद्ध कहते हैं कि सत्य को छोड़कर जो असत्य बोलता है, धर्म का उलंघन करता है, परलोक की जिसे चिंता नहीं है, वह आदमी बड़े से बड़ा पाप कर सकता है।

2. धर्म का पालन करो
दोस्तों! हमारा धर्म क्या है? बड़ों आदर करना, उनका सम्मान करना, छोटों को प्यार करना, दूसरों की मदद करना एवं  असहाय को सहारा देना।

यही हमारा मूल धर्म है।सफल व्यक्ति सदा इन धर्मों का पालन करते हैं और सभी से प्रेम स्नेह सम्मान पाते हैं। उनकी सच्ची शिक्षा उनके इन्हीं विचारों भावों में प्रकट होती है।

धन, सुख, संपत्ति व समृद्धि सभी धर्म के मार्ग पर ही प्राप्त होते है।  

3. क्रोध मत करो
जो व्यक्ति क्रोध पर विजय प्राप्त कर लेता है।  उस व्यक्ति को दुनिया की कोई की  कोई ताकत हरा नहीं सकती।  क्रोध ही व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन है। 

इसलिए क्रोध नामक दुश्मन को अपने अन्दर प्रकट ही नहीं होने देना चाहिए।   क्रोध के कारण ही व्यक्ति स्वयं को हानि क्षति पहुँचता है और अपनी असफलता का कारण स्वम ही बन जाता है। 

गौतम बुद्ध ने भी कहा है - "आपको क्रोध करने की सजा नहीं मिलती हैं बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है।"   

सच्ची शिक्षा कहानी
 
सच्ची शिक्षा के 3 असली मूल मंत्र 


गुरु द्रोणाचार्य के कौरव और पांडव सामान रूप से शिक्षा ग्रहण करते थे।  एक बार गुरु द्रोणाचार्य जी, कौरव, पांडव सहित अन्य शिष्यों को नीति और धर्म का पाठ पढ़ा रहे थे। उन्होंने सबको तीन वाक्य याद करने कहा-

1. सदा सत्य बोलो।
2. धर्म का पालन करो।
3. क्रोध मत करो।

अगले दिन सभी कुमारों ने गुरूजी को तीनों वाक्य सुना दिये। लेकिन जब युधिष्ठिर की बारी आयी तो वो गुरूजी से बोले - "गुरुदेव मुझे तो अभी दो वाक्य ही याद हुए हैं"। गुरुदेव बोले - "अच्छा ठीक है कल याद कर आना"। 

अगले दिन गुरूजी ने युधिष्ठिर से वाक्य सुनाने के लिए कहा। युधिष्ठिर बोले, -"गुरूजी मुझे आज भी दो वाक्य याद हुए हैं। द्रोणाचार्य गुस्से से आग-बबूला हो गये और युधिष्ठिर को छड़ी से पीटना 
शुरू कर दिया परन्तु युधिष्ठिर ऐसे मुस्कुरा रहे थे।  

जैसे कुछ हुआ ही ना हो। गुरु द्रोण को कुछ आश्चर्य हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा  - "कौन से दो वाक्य याद हो गये हैं। 

युधिष्ठिर बोले गुरूजी लगता है अब तीनों वाक्य याद हो गये हैं। जिस समय आप मुझे पीट रहे थे, उसी समय मैंने मन में सोच लिया था कि मुझे क्रोध नहीं करना चाहिए और अब मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है। 

यह सुनकर गुरु द्रोण ने युधिस्ठिर को गले से लगा लिया। 

सन्देश - इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदा सत्य बोलना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, तथा क्रोध नहीं करना चाहिए। जैसा कि युधिस्ठर को तीसरा वाक्य याद न होने पर सत्य बोला, गुरु की आज्ञा मानकर धर्म का पालन किया व पिटने पर भी क्रोध नहीं किया। 

इस प्रकार युधिस्ठिर ने गुरु द्वारा दिये तीनों वचनों का पालन किया। यही सच्ची शिक्षा कहलाती है। जो व्यक्ति इन तीनों बातों का पालन अपने जीवन में करता है उस व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। 

अर्थात शिक्षा के इन तीन मूल मन्त्रों को अपने जीवन में उतारने से आपकी सफलता निश्चित है।    

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