एक डाकू अंगुलिमाल और भगवान गौतम बुद्ध

Buddha and Angulimal

भगवान गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल

कहानी

एक बार महात्मा बुद्ध श्रावस्ती नामक स्थान पर अपना उपदेश देने पहुँचे। तो उन्होंने देखा लोगों के अन्दर डर और दहशत भरी हुई है। बुद्ध ने उस दहशत और डर का कारण लोगों से पूछा। तब लोगों ने उन्हें अंगुलिमाल डाकू के अत्याचार की कहानी बड़े विस्तार से सुनाई और अपना दुःख व्यक्त किया।

लोगों के दुःख को देखकर भगवान बुद्ध ने सोचा कि वह अंगुलिमाल से मिलने अवश्य जायेंगे और तय किया कि वह अकेले ही जायेंगे।

श्रावस्ती नरेश ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने। वह अकेले ही अत्याचारी डाकू से मिलने चले गये।
जब भगवान बुद्ध घने जंगलों में चल रहे थे तभी अचानक से अंगुलिमाल डाकू वहाँ आ गया। उसके हाँथ में तेज धार वाली तलवार थी और क्रोध से उसका मुख लाल हो रहा था।

वह मारने के लिए बुद्ध की ओर दौड़ा तभी भगवान बुद्ध ने बड़े प्रेम भाव में डाकू से कहा , "वत्स ! रूको ! मैं तो तुम्हारे हाथों ही मरने आया हूँ लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है। क्या तुम उसे पूरी करोगे ? "

डाकू ने सोचा , फिर बोला "ठीक है बोलो। " भगवान बुद्ध ने कहा , "मेरे लिए सामने लगे उस पेड़ से एक पत्ती तोड़ लाओ। "

डाकू बुद्ध के व्यक्तित्व से ऐसा प्रभावित हुआ कि वह माना नहीं कर सका। वह तुरन्त गया और एक पत्ती तोड़ कर ले आया।

बुद्ध ने कहा , "पुत्र अब इसे उसी पेड़ पर लगा आओ। "

डाकू क्रोध में बोला , "कहीं टूटी हुई पत्ती फिर से पेड़ पर लग सकती है ?"

भगवान बुद्ध बोले , "वत्स जिस प्रकार पेड़ से टूटी पत्ती फिर से पेड़ पर नहीं लग सकती। 
उसी प्रकार किसी का जीवन लेना तो सरल है किन्तु किसी को जीवन देना कठिन है।
बन सके तो लोगों की रक्षा करो उन्हें मारो मत।"

बुद्ध की यह बात अंगुलिमाल डाकू के हृद्य को छू गयी और अंगुलिमाल का हृद्य परिवर्तन हो गया।
वह  भगवान बुद्ध के चरणों में गिर गया और क्षमा माँगने लगा।
वह बोला - "हे प्रभु ! मुझे सही मार्ग दिखलाएँ। "

महात्मा बुद्ध से क्षमा माँगता हुआ डाकू अंगुलिमाल
महात्मा बुद्ध से क्षमा माँगता हुआ डाकू अंगुलिमाल

भगवान बुद्ध ने उसे उठाया और कहा - 
"वत्स प्राणियों के दुःखों को दूर करो। 
उन्हें सुख पहुँचाने के कार्य करो। 
इसी से तुम्हारे पापों का अंत होगा। "

बुद्ध के इन वचनों को सुनकर अंगुलिमाल ने दृढ़संकल्प किया कि वह लोगों की भलाई और सहायता में अपना पूरा जीवन बिता देगा।  तभी से उसने भलाई और सेवा का मार्ग अपना लिया।


सन्देश - इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति कितना भी बुरा हो लेकिन अच्छे विचारों के प्रभाव
से वह एक महान इंसान बन सकता है। यह सत्य कि एक समय पर बुराई का अंत अवश्य होता है। जैसे अंगुलिमाल डाकू की बुराईयों का हुआ।

इस कहानी में अंगुलिमाल बुराई का प्रतीक है। और महात्मा बुद्ध अच्छाई का प्रतीक हैं। बुराई के सामने अच्छाई की जीत सदैव निश्चित होती है।

यदि अज्ञानी व्यक्ति को किसी ज्ञानी का साथ मिल जाता है तो उस अज्ञानी की अज्ञानता भी उसका साथ छोड़ देती है। जिस प्रकार महात्मा बुद्ध के आने पर बुराई  ने अंगुलिमाल का साथ छोड़ दिया।

भगवान गौतम बुद्ध प्रेम करुणा और अहिंसा की साक्षात् मूर्ति हैं। वैर, क्रोध और हिंसा के स्थान पर वे प्रेम और अहिंसा को स्थान देते थे। अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से उन्होंने डाकू अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तन किया।


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