कोमल की मूल्यवान टोकरी





कोमल की मूल्यवान टोकरी
कहानी
रतनपुर नाम का एक सुन्दर गांव था। रतनपुर गांव नदी किनारे बसा हुआ था। अचानक नदी के बांध के टूटने से सारा गांव बाढ़ की चपेट में आकर तहस -नहस हो गया। सारे खेत -खलियान जलमग्न हो गए।
गांव के लोग बेघर हो गए।


गांव के बहुत से लोग पास के शहर में दशहरा मैदान में आकर रहने लगे। उनके पास अब रहने के लिए पक्का  घर नहीं था। उन्होंने रहने के लिए छोटी -छोटी झोपड़ियाँ बना ली। अब वे बहुत निर्धन थे। वे अक्सर आपस में अपने गॉव में बिताये अपने अच्छे दिनों को याद करके खुश रहना सीख रहे थे।



उनके पास दिन भर में पेटभर खाने का भी जुगाड़ करना बड़ा मुश्किल था। माँ -बाप दिन -भर झोपड़ियों में रहकर हाथ से बांस की रंग -बिरंगी टोकरियाँ बनाते थे। उनकी बच्चे बस - स्टेण्ड पर टोकरी बेचने जाते। वे पूरे दिन टकटकी लगाए ग्राहकों का इन्तजार करते और सोचते शायद आज भरपेट खाना शाम तक मिल जाए।


इन परिवारों में एक छोटा -सा परिवार भी था। इस परिवार में अपाहिज माता -पिता व उनकी एक छोटी-सी सात वर्ष की सुन्दर बेटी थी। उसका नाम कोमल था। टोकरी बेचने की सारी ज़िम्मेवारी उस छोटी बच्ची के कन्धों पर थी।


प्रतिदिन की तरह सभी बच्चे बस -स्टैण्ड के नजदीक ग्राहकों का इन्तजार कर रहे थे। उस दिन कोमल टोकरी लेकर नहीं आई थी। बच्चों क पास अचानक एक बस आकर रुकी। कुछ लोग फल खरीदने उतरे। एक व्यापारी कुछ टोकरियाँ खरीदने उतरा। वे बच्चे अपनी -अपनी टोकरियाँ बेचने के लिए उस  व्यापारी के चारों ओर इस तरह इकठ्टे हो गए जैसे टिड्डियों का झुण्ड एक साथ तैयार फ़सल के चारों ओर छा जाता है।



व्यापारी ने बहुत सी टोकरियाँ खरीदीं। तभी कोमल दौड़ती हुई वहाँ आई। उसके हाथ में सुन्दर -सुन्दर टोकरियाँ थीं। कोमल की आँखों में आँसू भरे हुए थे। करुणा भरी आवाज में कोमल बोली , "बाबूजी मेरी टोकरी भी खरीद लीजिए ना "


व्यापारी पहले से ही अनेक टोकरियाँ खरीद चुका था। वह बोला , "मैने तो बहुत सारी टोकरियाँ खरीद ली हैं, अब मुझे और टोकरियों की आवश्यकता नहीं है "।

कोमल के फटे हुए कपड़े व आँखों में आँसू देखकर व्यापारी बोला -" मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ " यह कहकर उसने कोमल की टोकरी में कुछ पैसे डाल दिए।

कोमल को व्यापारी का दान अच्छा नहीं लगा। कोमल बोली , "बाबूजी मैं ग़रीब हूँ किन्तु भिखारी नहीं " यह कहकर कोमल ने पैसे वापस कर दिए और बोली , "टोकरी नहीं खरीद सकते तो कोई बात नहीं " 
छोटी सी कोमल की यह बात सुनकर , व्यापारी आश्चर्यचकित रह गया और उसे एहसास हुआ कि उसने जो किया वह बहुत गलत था। किसी के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। `

कोमल अपने ऑसू पोंछकर मुस्कुराई और दौड़ती हुई दूसरी बस की ओर चली गयी।

तभी बस में से एक और व्यापारी उतरा और उसने कोमल की सभी टोकरियाँ बहुत अच्छे मूल्य पर खरीद लीं। और कोमल अपने साथियों के साथ खुश होकर वापस घर लौट गई। 

उस नन्हीं सी कोमल के व्यवहार से व्यापारी समझ गया कि व्यक्ति की पहिचान उसके बाहरी आवरण से नहीँ बल्कि आन्तरिक गुणों , अच्छे विचार और आत्मसम्मान से जीने की कला से होती है। बाहरी आवरण , वेशभूषा तो व्यक्ति के जीवन की विषम परिस्थितियाँ बनाती हैं। अनेक कठिन परिस्थितियों व्यक्ति को इतना मजबूत कर देती हैं कि वह किसी भी समस्या में अपने मानवीय गुणों सच्चाई , ईमानदारी व आत्मसम्मान से जीना नहीं छोड़ता है।


सन्देश : - आज हमने भी कोमल से यह सीखा कि हमें भी किसी के सामने दया की भीख़ नहीं माँगनी चाहिए। और अपने कर्म पर ही विश्वास रखना चाहिए। मेहनत का फल सदैव मीठा होता है। देर से ही मिले किन्तु मिलता अवश्य है जैसे कोमल को मिला। कोमल को अपनी मेहनत , ईमानदारी और सच्चाई पर पूर्ण विश्वास था। इसी कारण उसे अपने काम में सफलता मिली। हमें भी अपने काम को मेहनत , सच्ची लगन और ईमानदारी से करना चाहिए। दूसरों का सहारा और दया पाना छोड़कर अपनी काबिलियत से जीना चाहिए। पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य को याद रखते हुए कर्म करते रहना चाहिए। 


भगवत गीता में भी लिखा है -
"कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।" 
अर्थात  - कर्म करो फल की इच्छा मत करो  

इस प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से आप सभी को कुछ मूल्यवान मानवीय गुणों से परिचित कराना हमारा एक छोटा सा प्रयास है।

नन्हीं कोमल की कहानी आपको पसन्द आई है 

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